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9. सन्धि 

9. सन्धि 

दो निर्दिष्ट वर्णों के पास-पास आने के कारण उनके मेल से जो विकार उत्पन्न होता है, उसे संधि कहते हैं।सन्धि में जब दो वर्ण अथवा अक्षर मिलते हैं तो उनकी मिलावट से विकार पैदा होता है। अक्षरों  की  यह  विकारजनित मिलावट ही ‘सन्धि’ कहलाती है। इस विकारजन्य मिलावट को समझकर वर्णों को अलग करते हुए पदों को अलग-अलग कर देना ही ‘सन्धिविच्छेद’ कहलाता है।  

सन्धि तीन प्रकार की होती हैः 

1. स्वर (अच्) सन्धि  

2. व्यंजन (हल्) सन्धि  

3. विसर्ग सन्धि  

1. स्वर सन्धि 

स्वर वर्ग के साथ स्वर वर्ण के मेल को स्वर सन्धि कहते हैं जैसे:  

राम + अवतार = (राम + अ + अ + वतार) = रामावतार।  

यदि दो सवर्ण स्वर पास-पास आवें तो दोनों मिलकर सवर्ण दीर्घ स्तर हो जाते हैं। जैसेः  

शश + अंक = शशांक  

कल्प + अंत = कल्पांत  

अन् + अंत = अनंत 

रत्न + आकर = रत्नाकर 

कुश + आसन = कुशासन 

विद्या + अर्थी = विद्यार्थी 

विद्या + आलय = विद्यालय 

महा + आशय = महाशय 

वार्ता + आलाप = वार्तालाप 

गिरि + ईश = गिरीश 

कपि + ईश = कपीश 

सिंह + आसन = सिंहासन 

पंच + आनन = पंचानन 

भोजन + आलय = भोजनालय  

प्रति + इति = प्रतीति 

मही + ईश्वर = महीश्वर 

सती + ईश = सतीश 

रजनी + ईश = रजनीश 

2. गुणस्वर सन्धि - ए, ओ, अर, अल 

यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘इ’ या ‘ई’, ‘उ’ या ‘ऊ’ और ‘ऋ’ आए तो दोनों मिलकर क्रमशः ‘इ’ या ‘ई’ के स्थान पर ‘ए’, ‘उ’ या ‘ऊ’ के स्थान पर ‘ओ’ और ‘ऋ के स्थान पर ‘अर्’ हो जाते हैं जैसेः  

देव + इन्द्र = देवेन्द्र 

गण + ईश = गणेश 

सुर + ईश = सुरेश 

गज + इन्द्र = गजेन्द्र 

सुर + ईश्वर = सुरेश्वर 

ब्रज + ईश = ब्रजेश 

रमा + ईश्वर = रमेश्वर 

सूर्य + उदय = सूर्योदय 

महा + उत्सव = महोत्सव 

महा + ऋषि = महर्षि 

महा + ईश = महेश 

महा + उदय = महोदय 

सप्त + ऋषि = सप्तर्षि 

राजा + ऋषि = राजर्षि 

3. वृद्धि स्वर सन्धि -ऐ, औ 

यदि ‘अ’ या ‘आ’ के बाद ‘ए’ आए तो दोनों के स्थान पर ‘ऐ’ और ‘ओ’ या ‘औ’ आए तो दोनों के स्थान में ‘औ’ हो जाते हैं। जैसे: 

एक + एक = एकैक 

सदा + एव = सदैव 

हित + एषी = हितैषी 

तथा + एव = तथैव 

4. यण सन्धि 

इ या ई के पश्चात् इ या ई को छोड़कर कोई और (असवर्ण) स्वर हो तो इ या ई के स्थान पर य् हो जाता है, जैसे- 

अति + अल्प = अत्यल्प 

यदि + अपि = यद्यपि 

इति + आदि = इत्यादि 

अति + आनंद = अत्यानंद 

प्रति + एक = प्रत्येक 

सखी + ऐक्य = सख्यैक्य 

उ या ऊ के पश्चात् उ या ऊ को छोड़कर कोई और (असवर्ण) स्वर हो, तो उ या ऊ के स्थान पर व् हो जाता है, जैसे- 

अनु + ईक्षण = अन्वीक्षण 

अनु + एषण = अन्वेषण 

गुरु + औदर्य = गुर्वौदार्य 

मातृ + आज्ञा = मात्रज्ञा 

5. अयाधि सन्धि 

ए, ऐ, ओ, और के वाद कोई असवर्ण स्वर हो, तो इनके स्थान पर क्रमशः अय् आय् अव, आव् हो जाता है, उदाहरण- 

नयन्, आय, नायक 

पवन, पावक 

परन्तु हिन्दी में में ये शब्द तो रूढ़ माने जाते हैं इसलिए सन्धि प्रकरण में नहीं आते। 

व्यंजन सन्धि 

व्यंजन वर्ण के साथ व्यंजन अथवा स्वर के मेल से उत्पन्न विकार को व्यंजन सन्धि कहते हैं। जैसे जगत + ईश = जगदीश, जगत + नाथ = जगन्नाथं  

व्यंजन सन्धि के नियम 

1. अघोष व्यंजन के पश्चात् स्वर या सघोष व्यंजन हो तो अघोष का सघोष हो जाता है, जैसेः  

वाक् + ईशा = वाणीश 

दिक् + दर्शन = दिग्दर्शन 

ऋक् + वेद = ऋग्वेद 

अच् + अंत = अजंत 

षट् + दर्शन = षड्दर्शन 

उत् + घाटन = उद्घाटन 

सत् + धर्म = सद्धर्म 

जगत् + अम्बा = जगदम्बा 

जगत् + ईश = जगदीश 

उत् + वेग = उद्वेग 

जगत् + गुरु = जगद्गुरू 

नोट: वास्तव में हिन्दी में तत्सम शब्दों के अंत में अघोष व्यंजन केवल वर्ग के पहले वर्ण-क च ट त प होते हैं। 

2. अघोष व्यंजन के बाद किसी वर्ग का पांचवा वर्ण वस्तुतः (केवल न म) आए, तो उस अघोष का अपना पंचमाक्षर हो जाता है, जैसे 

जगत् + नाथ = जगन्नाथ 

वाक् + मय = वांड्मय 

षड् + मास = षण्मास 

उत् + मत्त = उन्मत्त 

सत् + मार्ग = सन्मार्ग 

सु”त् + नाश = सु”न्नाश  

दिक् + नाग = दिग्नाग 

3. अघोष व्यंजन के बाद ह हो तो उस अघोष का सघोष हो जाता है, जैसेः 

वाक् + हरि = वाग् हरि = वाग्घरि 

तत् + हित = तद्हित = तद्धित 

उत् + हार = उद्धार = उद्धार 

जगत् + हित = जगद्हित = जगद्धित 

4. अघोष व्यंजन के पश्चात् ल और कुछ स्थितियों में ज आए तो अघोष व्यंजन भी ल ज में बदल जाता है। उदाहरणः  

विपत् + जाल = विपज्जाल/विपद्जाल 

जगत् + जननी = जगज्जननी 

शरत् + लीला = शरल्लीला 

उत् + लंघन = उल्लंघन 

उत् + लास = उल्लास 

सत् + जन = सज्जन 

उत् + लेख = उल्लेख 

5. अघोष के उपरान्त अघोष व्यंजन हो, तो प्रायः कोई परिवर्तन नहीं होता, जैसे  

उत् + साह = उत्साह 

क्षुत् + पिपासा = क्षुत्पिपासा 

सत् + कार = सत्कार 

तत् + पर = तत्पर 

6. कुछ स्थितियों के पहले शब्द के अंत में आने वाला अघोष व्यंजन बाद में आने वाले अघोष व्यंजन के रूप में ही बदल जाता है। उदाहरण- 

उत् + चारण = उच्चारण, 

शरत् + चंद्र = शरच्चंद्र 

सत् + चरित्र = सच्चरित्र, 

7. त् श का च्छ हो जाता है, जैसे- 

उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट 

सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र 

उत् + श्वास = उच्छ्वास 

सत् + शासन = सच्छासन 

शरत् + शाशि = शरच्छशि 

8. स्वरति शब्द के बाद छ हो, तो च्छ हो जाता है, जैसे- 

स्व + छंद = स्वच्छंद 

आ + छादन = आच्छादन 

तरु + छाया = तरुच्छाया 

छत्र + छाया = छत्रच्छाया 

परि + छेद = परिच्छेद 

9. पहले शब्द के अंत में म् और उसके बाद वर्ग का निरनुनासिक व्यंजन ऐ हो तो म् के स्थान पर अगले शब्द का पंचमाक्षर अथवा विकल्प से पंचमाक्षर हो जाता है। हिन्दी में अब अनुस्वार का प्रचलन व्याप्त है। उदाहरण 

सम् + कलन = संकलन, 

सम् + चय = स×चय, संचय 

सम् + पूर्ण = सम्पूर्ण, संपूर्ण 

सम् + तोष = सन्तोष, संतोष 

10. यदि म् के बाद य र ल व अथवा श ष स ह हो तो अनुस्वार ही होता है। उदाहरण- 

संयम संशय संरक्षण संसार संलग्न 

संहार संवाद 

11. णत्व अर्थात् न का ण: यदि ऋ र् ष् के बाद न् हो, भले ही बीच में कोई स्वर, कवर्ग व्यंजन, पवर्ग व्यंजन, अथवा य व ह, तो न का ण हो जाता है, जैसे 

ऋण, रण, भरण, पोषण, विस्मरण, तृष्णा, भूषण 

प्रापण, कल्याण, उत्तरायण, रामायण, परिमाण 

12. षत्व अर्थात् स का ष: स से पहले आ आ से भिन्न कोई स्वर हो, तो स का ष हो जाता है, जैसे- 

नि + सेध = निषेध 

अभि + सेक = अभिषेक 

अनु + संगी = अनुषंगी 

सु + सुप्त = सुषुप्त 

वि + सम = विषम 

13. व्यंजन के बाद कोई स्वर हो तो वह स्वर पूर्ववर्ती व्यंजन की मात्र बन जाता है, पर नियम 1 अवश्य लगता है, जैसे- 

तद् + अर्थ = तदर्थ 

निर् + उद्यम = निरुद्यम 

अन् + आचार = अनाचार 

सम् + ईश = समीक्षा 

स्वर संधि और व्यंजन संधि के अपवाद 

मार्त + अण्ड = मार्तण्ड 

अन्य + अन्य = अन्यान्य 

स्व + ईर = स्वैर 

उत् + स्थान = उत्थान 

अक्ष + ऊहिनी = अक्षौहिणी 

सार + अंग = सारंग 

पर + अक्ष = परोक्ष 

प्र्र + ऊढ़ = प्रौढ़ 

सम् + कृति = संस्कृति 

कुल + ओष्ठ = कुलोष्ठ 

लंब + ओष्ठ = लंबोष्ठ 

वाचः + पति = वाचस्पति 

विसर्ग सन्धि 

विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन के मेल से जो विकार है उसे विसर्ग सन्धि कहते हैं। जैसे तपः + वन = तपोवन, निः + अंतर = निरंतर।  

निः + चल = निश्चल 

धनुः + टंकार = धनुष्टंकार 

मनः + ताप = मनस्ताप 

निः + सन्देह = निः सन्देह, निस्सन्देह 

निः + कपट = निष्कपट 

दुः + ख = दुःख 

दुः + कर्म = दुष्कर्म 

निः + पक्ष = निःपक्ष, निष्पक्ष 

नमः + कार = नमस्कार 

पुरः + कार = पुरस्कार 

मनः + योग = मनोयोग 

निः + आशा = निराशा 

दुः + उपयोग = दुरुपयोग 

कुछ प्रमुख शब्दों के सन्धिविच्छेद 

अन्याय = अ + नि + आय 

अत्यधिक = अति + अधिक 

अधोगति = अधः + गति 

अत्याचार = अति + आचार 

उद्भव = उत् + भव 

उपेक्षा = उप + ईक्षा 

उदय = उत् + अय 

कुलटा = कुल + अटा 

तथापि = तथा + अपि 

तपोवन = तपः + वन 

निश्चय = निः + चय 

निष्प्राण = निः + प्राण 

निर्गुण = निः + गुण 

परमेश्वर = परम + ईश्वर 

तिरस्कार = तिरः + कार 

देवेश = देव + ईश 

दिगम्बर = दिक् + अम्बर 

देवर्षि = देव + ऋषि 

निषिद्ध = निसिघ् + त 

निर्मल = निः + मल 

निष्कपट = निः + कपट 

परमार्थ = परम + अर्थ 

पवन = पो + अन 

पवित्र = पो + इत्र 

प्रातः काल = प्रातः + काल 

महाशय = महा + आशय 

मनोज = मनः + ज 

पीताम्बर = पीत + अम्बर 

सदानन्द = सत् + आनन्द 

सद्गुरु = सत् + गुरु 

सदैव = सदा + एव 

सर्वोत्तम = सर्व + उत्तम 

संगठन = सम् + गठन 

सरोवर = सरः + वर 

कुछ प्रमुख शब्दों की सन्धियां 

षट् + दर्शन = षड्दर्शन 

जगत् + आन्नद = जगदानन्द 

षट + आनन = षडानन 

सत + वाणी = सदवाणी 

वाक + ईश = वागीश 

जगत + नाथ = जगन्नाथ 

सम + योग = संयोग 

सम + वाद = संवाद 

भूष + अन = भूषण 

प्र + मान = प्रमाण 

राम + अयन = रामायण 

वि + स्मरण (स्म - धातु) = विस्मरण 

अनु + सरण (सृ-धातु) = अनुसरण 

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