7. उपसर्ग
7. उपसर्ग
यौगिक शब्द मुख्यतः चार प्रकार से बनते या बनाये जाते हैं
1. रूढ़ शब्द के पहले कुछ शब्दांश जोड़कर जिन्हें उपसर्ग या पूर्वप्रत्यय कहते हैं,
2. रूढ़ शब्द के बाद कोई शब्दांश लगाकर जिन्हें प्रत्यय या पर प्रत्यय कहा जाता है।
3. दो-दो शब्द इकट्ठे बैठाकर जिन्हें समास कहा गया।
4. दो-दो, तीन-तीन शब्द जोड़कर उनके अंत और ध्वनियों को एक-जान करके अर्थात् संधि द्वारा।
उपसर्ग (PREFIX)
परिभाषा: उस शब्दांश या अव्यय को उपसर्ग कहते हैं जो किसी शब्द के पहले आकर विशेष अर्थ प्रकट करता है। यह ‘उप’ और ‘सर्ग’ दो शब्दों के योग से बना है। उप = निकट या पास में, सर्ग = सृष्टि करना। जैसे ‘हार’ और ‘बन’ शब्द के पूर्व क्रमशः ‘प्र’ और ‘अन’ उपसर्गों के लग जाने से ‘प्रहार’ और ‘अनबन’ नए शब्द बन गए। इनका नया अर्थ हुआ मारना और मनमुटाव।
1. अ
अभाव, निषेध (नहीं)
• अकथनीय: जो कहा न जा सके, जिसका वर्णन करना कठिन हो।
• अकरणीय: न करने योग्य, जिसे करना ठीक न हो।
• अकर्तित: जो कटा या कतरा न गया हो।
• अक्षम्य: जिसे क्षमा न कर सकें।
• अगम: जहां तक कोई न पहुंच सके_ जो जल्दी समझ में न आए।
• अतृप्त: जो तृप्त या संतुष्ट न हुआ हो_ भूखा।
• अदृष्ट: जो न देखा हो_ लुप्त।
• अनौचित्य: अनुचित होने का भाव।
• अमर्त्य: न मरने वाले, अमर, प्राणी, मनुष्य।
• अस्वामिक: जिसका कोई स्वामी न हो, लावारिस।
• अचूक: न चूकने वाला, पक्का
• अडिग: अटल, स्थिर
• अथक: जो न थके
• अबेर: देर, विलंब
• अमिट: जो न मिटे, अवश्यंभावी
• अलोना: जिसमें नमक न पड़ा हो, फीका
2. अंतः, अंतर, अंतस्
‘भीतर’ या ‘बीच का’
• अंतःकरण: अंदर की संकल्प-विकल्प अच्छे-बुरे के विवेक और स्मरण की शक्ति।
• अंतःपुर: घर या महल का भीतरी भाग जिसमें स्त्रियां रहती हैं।
• अंतःश्वसन: सांस को भीतर खींचने की क्रिया।
• अंतर्ज्ञान: मन में होने वाला, स्वाभाविक, बिना बाहर की प्रेरणा से उत्पन्न ज्ञान।
• अंतर्दृष्टि: वह मानसिक शक्ति जिसके द्वारा व्यक्ति प्रच्छन्न रहस्य को जान लेता है।
• अंतर्द्वद्वं: मन में अंतर्विरोधी विचार और संघर्ष उत्पन्न होने की स्थ िति।
• अंतर्धान: लुप्त, एकदम अदृश्य हो जाना।
• अंतर्धारा: नदी या समुद्र की ऊपरी धारा के नीचे बहने वाली धारा।
• अंतर्भौम: पृथ्वी के भीतरी भाग का।
• अंतर्वती: अंतर्गत, भीतर होने वाला या रहने वाला।
• अंतस्तत्व: हृदय या मन का भीतरी भाग।
• अंतस्थ: दो वस्तुओं के बीच का।
3. अति
• अतिदेश: दूसरे किसी विषय में किया जाने वाला आरोप, अवधि आगे बढ़ाने की बात
• अतिपात: जीवहिंसा, अव्यवस्था, बाधा
• अतिरंजना: किसी बात को बहुत अधिक बढ़ाकर कहना
• अतिरेक: अधिकता, अतिविस्तार, अधिक होने का भाव
• अतिव्याप्ति: लक्ष्य के अतिरिक्त अन्य बहुत पर लक्षण के आ जाने का दोष
• अतीन्द्रिय: इन्द्रियों के अनुभव से परे
• अत्युक्ति: बढ़ा-चढ़ाकर कही हुई बात
4. अधः
• अधःपतन: नीचे गिरना, अवनति, द ुर्दशा।
• अधोगामी: नीचे जाने वाला, अवनति की ओर जाने वाला।
• अधोमुख: औंधा, उल्टा, उल्टे मुंह, मुंह के बल।
• अधोलोक: नीचे का लोक, पाताल।
• अधोहस्ताक्षरी: पत्र के नीचे हस्ताक्षर करने वाला।
5. अधि
• अधिकरण: जिसके ऊपर या अन्दर कोई वस्तु टिकी हो, आधार, सहारा।
• अधिक्षेत्र: (अधिकार) अधिकार-क्षेत्र।
• अधिगत: (स्वार्थ) पाया हुआ, जाना हुआ, ज्ञात।
• अधित्यका: (ऊपर) पहाड़ के ऊपर की समतल भूमि।
• अधिशासी: (ऊपर से) देख रेख करने वाला (अभियंता)।
• अधिष्ठाता: (प्रधान) मुखिया, ईश्वर।
• अधिहरण: (अधिकार) अधिकार पूर्वक जब्त करना।
6. अन्
• अनंतर: अन् + अंतर (पीछे, लगातार, निरंतर)
• अनद्यतन: अन् + अद्यतन (जो आजकल का न हो)
• अननिवार्य: अन् + अ + निवार्य (जो अनिवार्य न हो)
• अनपत्य: अन् + अपत्य (जिसे अपत्य या सन्तान न हो)
• अनभ्यस्त: अन् + अभ्यस्त (जिसने अभ्यास न किया है, जिसका अभ्यास न किया गया हो)।
• अनवधान: अन् + अवधान (असावधानी)
• अनाप्त: अन् + आप्त (अप्राप्त)
7. अनु
• अनुकंपा: (साथ) दया, कृपा।
• अनुकृत: (पीछे) जिसका अनुकरण किया गया हो।
• अनुगृहीत: (बार-बार) जिस पर अनुग्रह किया गया हो।
• अनुजीवी: (पीछे) सेवक, नौकर, आश्रित।
• अनुज्ञप्त: (पीछे) जिसके लिए स्वीकृति पहले मिल गई।
• अनुधावन: (पीछे) पीछे चलना, अनुसरण करना।
• अनुयान: (पीछे) वह यान जिसे कोई दूसरी गाड़ी खींचती है।
• अपकर्ष: (नीचे) नीचे खींचना, उतार, गिराव।
• अपकीर्ति: (बुरा) अपयश, बदनामी।
• अपघर्षण: (विकार) रगड़ से घिसना।
• अपचेता: (बुरा) किसी की बुराई सोच ने वाला।
• अपमिश्रण: (बुरा) घटिया चीज मिलाना।
• अपयोजन: (बुरा) किसी की सम्पत्ति को अनुचित रूप से काम में लाना।
• अपरूप: (बुरा) बदशक्ल, भद्दा, बेडौल।
• अपताप: (अपकर्ष) व्यर्थ की बकबक।
8. अभि
• अभिकर्ता: (अच्छी तरह) प्रतिनिधि, एजेंट।
• अभिघात: (स्वार्थे) चोट पहुंचाना, प्रहार, मार।
• अभिज्ञ: (अच्छी तरह) जानकार, निपुण, कुशल।
• अभिपुष्ट: (अच्छी तरह) जिसको पक्का किया गया हो।
• अभिभाषण: (अच्छा) विवेचनयुक्त लिखित भाषण।
• अभिषंग: (अनुचित) आक्रोश, कोसना, मिथ्या, अपवाद।
9. अव
• अवकाश: (व्याप्त) रिक्त या शून्य स्थान, दूरी, अंतर, अवसर, समय, खाली समय, छुट्टी।
• अवक्रांत: वरिष्ठ अधिकार द्वारा हटा या दबाकर अपने कब्जे में ले लिया गया हुआ।
• अवक्षय: सड़-गलकर जीर्ण-क्षीण हुआ।
• अवगुंठन: व्याप्ति ढकना, छिपाना, रेखा से घेरना, घूंघट।
• अवच्छिन्न: अलग किया हुआ।
• अवज्ञा: उचित मान का अभाव, आज्ञा न मानना।
• अवमर्दन: कष्ट पहुंचाना, कुचलना।
10. आ
• आकुंचन: सिकुड़ना, सिमटना।
• आख्यात: स्थान, प्रसिद्ध।
• आगणन: आना, आकर पहुंचना, प्राप्ति, लाभ।
• आच्छादन: ढकना, वस्त्र, छाजन।
• आदर्श: नमूना।
• आपात: गिराव, किसी घटना का अचानक हो जाना।
• आरोपण: लगने या स्थापित करने का कार्य।
• आसन्न: निकट, बहुत कुछ पास पहुंचा हुआ।
11. आत्म
• आत्मगत: अपने में आया या मिलाया हुआ, स्वगतकथन।
• आत्मघात: अपने हाथों अपने को मार डालना, आत्महत्या।
• आत्मज: अपने (खून) से उत्पन्न, लड़का, पुत्र, कामदेव।
• आत्मनिवेदन: आत्मसमर्पण, अपने को या अपना सर्वस्व अपने बड़े पर न्यौछावर कर देना।
• आत्मप्रदर्शन: अपने गुणों, कृत्यों का लोगों के सामने दिखावा।
• आत्मबलि: किसी उचित कार्य के लिए दी गई कुर्बानी।
• आत्मविस्मृति: अपने आप को भूल जान ा, अपना ध्यान न रखना।
• आत्मश्लाघा: अपने गुणों, धन, कृत्यों की अपने आप तारीफ।
• आत्मसात्: अपने में लीन किया हुआ, अपने अंतर्गत कर लिया हुआ।
• आत्मोत्सर्ग: दूसरे की भलाई के लिए स्वार्थ या हित छोड़ना।
• आत्मोद्धार: अपना उद्धार, अपने चरित्र का सुधार करना।
• आत्मोन्नति: अपनी उन्नति, अपने चरित्र की उत्रति।
12. उत्
• उत्क्रम: उलटा क्रम, ऊपर से नीचे का क्रम।
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