4. कारक विभक्तियां
4. कारक विभक्तियां
संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उनका (संज्ञा या सर्वनाम) सम्बन्ध सूचित हो उसे (उस रूप को) कारक कहते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि संज्ञा या सर्वनाम के आगे जब ‘ने’, ‘से’, ‘को’ आदि विभक्तियां लगती हैं, तब उनका रूप ही कारक कहलाता है। जैसे-राम ने खारे जल के समुद्र पर बन्दरों से पुल बंधवा दिया। यहां ‘राम ने’, ‘समुद्र पर’, ‘जल के’, ‘बन्दरों से’, ‘पुल’ संज्ञाओं के कारक हैं। ‘ने’, ‘पर’ आदि विभक्तियों से युक्त शब्द ही कारक हैं।
कारक का अर्थ है ‘करनेवाला’। ‘करनेवाला’ कोई क्रिया ही सम्पादित करता है। इस प्रकार कारक का सम्बन्ध कार्य अर्थात् क्रिया से है। वाक्य में प्रयुक्त उस नाम (संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण) को कारक कहते हैं जिसका अन्वय (सम्बन्ध) क्रिया या कृदन्त क्रिया के साथ होता है। हिन्दी में कारक आठ हैं-कर्त्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण और सम्बोधन।
हिन्दी की विभक्तियां
कारकों के बोध के लिए संज्ञा या सर्वनाम के आगे जो प्रत्यय लगाए जाते हैं उन्हें व्याकरण में विभक्तियां कहते हैं। विभक्ति से बना शब्दरूप ‘विभक्त्यन्त शब्द’ या ‘पद’ कहलाता है। हिन्दी कारकों की विभाक्तियों के चिह्नः
कारक | विभक्तियां |
कर्त्ता (Nominative) | ने |
कर्म (Objective) | को |
करण(Instrumental) | से (द्वारा) |
सम्प्रदान (Dative) | को, के लिए |
अपादान (Ablative) | से |
सम्बन्ध (Genitive) | को, के, की, रा, रे, री |
अधिकरण (Locative) | में, पे, पर |
सम्बोधन (Addressive) | हे, अहो, अजी, अरे। |
विभक्तियों का प्रयोग
हिन्दी में दो प्रकार की विभक्तियां हैं (1) विश्लिष्ट, (2) संश्लिष्ट।
कर्त्ता कारक
वाक्य में जो शब्द काम करनेवाले के अर्थ में आते हैं उसे ‘कर्त्ता’ कहते हैं। जैसे-राम खाता है। इसमें खाने का काम राम कर रहा है। अतः ‘राम’ ही कर्त्ता है। ‘ने’ इसकी विभक्ति है।
कर्मकारक
इसका चिह्न ‘को’ है। कभी-कभी ‘को’ के स्थान पर ‘ए’ प्रत्यय भी जुड़ता है_ जैसे-‘मुझको उसकी तलाश थी, वाक्य को ‘मुझे उसकी तलाश थी’ भी कहा जाता है। यदि कर्म निर्जीव हो तो सामान्यतः ‘को’ चिह्न का प्रयोग नहीं किया जाता है। उदाहरण-
राम चित्र बनाता है। यहां चित्र निर्जीव है अतः चित्र के पश्चात् को शब्द का प्रयोग नहीं हुआ है।
करण कारक
इसका चिह्न ‘से’ है। जिस साधन से कार्य का करना या होना पाया जाय, उसके बाद ‘से’ चिह्न का प्रयोग होता है। कभी-कभी इस कारक में ‘द्वारा’ या ‘साथ’ का भी प्रयेाग होता है। उदाहरण-चाकू से तरकारी काटो।
संप्रदान कारक
इसका चिह्न है- ‘को’, ‘के लिए’। जिसे कोई वस्तु दी जाती हो या जिसके लिए कार्य किया जाता हो, उसके बाद ‘को’ या ‘के लिए’ का प्रयोग होता हैः
उदाहरण- बच्चे को जूता पहनाओ।
अपादान कारक
इसका भी चिह्न ‘से’ है। किन्तु करण से भिन्न है। अपादान में दूरी या अलगाव का भाव होता है। उदाहरण-करण कारक-‘से’
1. वह पेड़ की डाल ‘से’ लिपटा है।
2. वह डंडे से मार रहा है।
अपादान कारक-‘से’
1. वह पेड़ की डाल ‘से’ गिर पड़ा।
2. धनुष ‘से’ बाण निकल रहे हैं।
सम्बन्ध कारक-का, के, की
इनके द्वारा अवस्था, नाते-रिश्ते, स्वामित्व, माप, कर्त्ता -कर्म, कारण-कार्य, जनक-जन्य आदि अनेक सम्बन्ध व्यक्त होते हैं।
उदाहरण-
1. बीस वर्ष की युवती। (अवस्था का सम्बन्ध)
2. पांच एकड़ की भूमि। (माप का सम्बन्ध)
अधिकरण कारक
इसके परसर्ग हैं- ‘मैं, पर’। संज्ञा का वह रूप जिससे क्रिया के आधार का बोध हो, अधिकरण कहलाता है।
जैसे- तिल में तेल,
जैसे- टेबल पर किताब है।
संबोधन कारक
इसका क्रिया से सम्बन्ध नहीं होता है, वाक्यगत अन्य शब्दों से भी इसका सम्बन्ध नहीं होता। परसर्ग के स्थान पर इसमें सम्बोधित संज्ञा या सर्वनाम के पश्चात् विस्मयादिबोधक चिन्ह (!) लगाया जाता है।
जैसे- हे बालकों ! अरे लड़कों ! रे शठ !