3. हिन्दी व्याकरण : वाच्य (Voice)
3. हिन्दी व्याकरण : वाच्य (Voice)
वाच्य (Voice)
वाच्य क्रिया का वह परिवर्तन है जिसके द्वारा बात का बोध होता है कि वाक्य के अंतर्गत कर्ता, कर्म अथवा भाव-इन तीनों में किसकी प्रधानता है तथा इनमें किसके अनुसार क्रिया के पुरुष, वचन आदि आते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि वाक्य में क्रिया के लिंग, वचन या तो कर्त्ता के अनुसार होते हैं अथवा कर्म के अनुसार या भाव के अनुसार।
वाच्य के तीन भेद होते हैं:
कर्त्तृवाच्यः क्रिया के उस रूपान्तर को कर्त्तृवाच्य कहते हैं जिसमें क्रिया कर्त्ता के लिंग, वचन एवं पुरुष के अनुसार अपना रूप बदलती है। इस वाच्य में क्रिया कर्त्ता के अनुरूप अपना रूप बदलती है, उदाहरणार्थ-लड़के जाते हैं।
कर्मवाच्य: कर्मवाच्य उसे कहते है जब क्रिया का फल कर्त्ता पर न पड़कर कर्म पर लिंग, वचन और पुरूष के अनुसार पड़ता है। इस प्रकार इस वाच्य के अन्तर्गत कर्त्ता कारण के रूप में और कर्म कर्त्ता के रूप में प्रयुक्त होता है। क्रिया कर्म के अनुसार रूपान्तरित होती है। जैसे-श्याम ने गीत गाया।
भाववाच्य: भाववाच्य में क्रिया न तो कर्त्ता के अनुसार होती है और न कर्म के अनुसार। इस वाच्य में क्रिया सदा एकवचन, पुलि्ंलग और अन्य पुरुष में रहती है तथा कर्त्ता एवं कर्म दोनों से मुक्त हो जाती है। उदाहरणार्थ- मुझसे टहला भी नहीं जाता। राम से बैठा भी नहीं जाता।