3. हिन्दी व्याकरण : क्रिया
3. हिन्दी व्याकरण : क्रिया
क्रिया
जिस विकारी शब्द से किसी काम का करना या होना समझा जाय, उसे क्रिया कहते हैं। जैसे आना,जाना, खेलना, पढ़ना आदि।
धांतु: मूल शब्द को ‘धातु’ कहते हैं। धातु में ‘ना’ प्रत्यय जोड़ने से क्रिया बनती है। यह क्रिया का साधारण रूप होता है। जैसे-‘आ’ धातु में ‘ना’ जोड़ने से ‘आना’ क्रिया बनती है। फिर ‘आना’ क्रिया के अनेक रूप बनते हैं-आया, आये, आएगा, आऊंगा, आओ आदि। ‘आना’ क्रिया की तरह ही अन्य क्रियाओं के रूप बनते हैं जैसे-
धातु (मूल शब्द) | कृदंत प्रत्यय | क्रिया का साधारण रूप |
गा | ना | गाना |
जा | ना | जाना |
उठ | ना | उठना |
बैठ | ना | बैठना |
धातु के प्रकार
व्युत्पत्ति अथवा शब्द निर्माण की दृष्टि से धातु दो प्रकार की होती है- मूल धातु और यौगिक धातु। मूल धातु किसी दूसरे शब्द पर आश्रित नहीं होती अर्थात् वह स्वतंत्र होती है। जैसे खा, देख, पी आदि। यौगिक धातु का निर्माण किसी प्रत्यय के योग से होता है। जैसे ‘खाना’ से खिलाना, रंग से रंगना, पढ़ना से पढ़ाना आदि।
यौगिक धातु की रचना तीन प्रकार से होती है:
1. धातु में प्रत्यय लगाने पर अकर्मक से सकर्मक और प्रेरणार्थक धातुएं बनती हैं
2. कई धातुओं को संयुक्त करने से संयुक्त धातु बनती है,
3. संज्ञा या विशेषण से बननेवाली नामधातु।
रचना की दृष्टि से क्रिया के भेद
रचना की दृष्टि से सामान्यतः क्रिया के दो भेद बताए जाते हैं:
1. सकर्मक
2. अकर्मक
सकर्मक क्रिया (Transitive Verb)
जिस क्रिया के साथ कर्म की संभावना हो अथवा जिस क्रिया में कर्ता के साथ कर्म भी जुड़ा होता है उसे सकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे, राम रोटी खाता है। इस वाक्य में ‘राम’ कर्ता है, रोटी कर्म है, ‘खाने’ के साथ उसका कृतरूप से सम्बन्ध है। रोटी के बिना क्रिया पूर्ण नहीं होगी।
अकर्मक क्रिया (Intrsnsitive Verb)
अकर्मक क्रिया उसे कहते हैं जिसका व्यापार और फल कर्ता पर ही होता है। वस्तुतः अकर्मक क्रियाओं का ‘कर्म’ नहीं होता, क्रिया का व्यापार और फल दूसरे पर न पड़कर कर्त्ता पर पड़ता है। जैसे-राम सोता है। यहां ‘सोना’ क्रिया अकर्मक है।
सकर्मक और अकर्मक क्रियाओं की पहचान
‘क्या’, ‘किसे’ आदि प्रश्नों के माध्यम से सकर्मक और अकर्मक क्रियाओं की पहचान होती है। इन प्रश्नों का यदि कोई उत्तर मिलता है तो समझना चाहिए कि क्रिया सकर्मक है और यदि उत्तर नहीं मिलता है तो क्रिया अकर्मक होगी। जैसे कुछ क्रियाओं में क्या, किसको लगाकर प्रश्न करने पर इनके उत्तर इस प्रकार मिलते हैं
1. तुम क्या पढ़ते हो?
उत्तर: किताब पढ़ता हूं।
2. तुम क्या खाते हो?
उत्तर: छोले भटूरे।
इन उदाहरणों में क्रियाएं सकर्मक हैं।
सहायक क्रिया
परिभाषा: मुख्य क्रिया की सहायता करने वाली क्रिया को ‘सहायक क्रिया’ कहते हैं। जैसे-
आलोक खेलता है।
हिमांशु पढ़ता था।
सुधा लिख रही है।
मैं खा चुका हूं।
सैनिक मोर्चे पर जा रहे हैं।
लड़के पढ़ रहे होंगे।
है, हैं, रहे हैं, था, रही है, हूं, गी, गा, गे-ये सहायक क्रियाएं हैं।
पूर्वकालिक क्रिया
परिभाषा: क्रिया की समाप्ति के पहले आनेवाली क्रिया को ‘पूर्वकालिक क्रिया’ कहते हैं। शब्द या धातु में ‘कर’ लगा कर पूर्वकालिक क्रिया बनायी जाती है। जैसे-
बकुल नहाकर खाएगा।
लड़कियां खेलकर आ गयीं।
मुकुल पढ़कर खेलेगा।
शोभन मन लगाकर पढ़ता है।
रोहन खाकर जाएगा।
मां खाना बनाकर लेटती है।
लड़कियां गाकर आयी है।
मैं पढ़कर खाना खाता हूं।
रीतिवाचक और पूर्वकालिक क्रिया
रीतिवाचक | पूर्वकालिक |
अजित दौड़कर भागा। | अजित गाकर बैठा। |
लड़का लेटकर पढ़ता है। | लड़का खाकर पढ़ता है। |
दिव्या भजनकर पूजा करती है। | दिव्या भजनकर भोजन करती है। |
सुमन हंसकर बोलता है। | सुमन बोलकर हंसता है। |
सजातीय क्रिया
परिभाषा: जिस क्रिया के साथ उसके मूल रूप से बने हुए कर्म हों, उसे ‘सजातीय क्रिया’ कहते हैं। जैसे-
सिपाही ने लड़ाइयां लड़ीं।
सिपाही ने चोर को बड़ी मार मारी।
उसने अच्छी चाल चली।
वह घोड़े की दौड़ दौड़ा।
उसने तगड़ा खेल खेला।
हमलोगों ने स्वादिष्ट खाना खाया।
सुजाता ने सुन्दर गाना गया।
रवि ने पूंजी में बढ़त बढ़ाई।