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19. मुहावरे और कहावत

19. मुहावरे और कहावत

 

मुहावरे 

‘मुहावरा’ शब्द का अर्थ है ‘अभ्यास या बातचीत’। हिन्दी का यह मुहावरा शब्द अरबी भाषा के ‘मुहावर’ शब्द का परिवर्तित रूप है। मुहावरा एक ऐसा वाक्यांश है जो सामान्य अर्थ का बोधन कराकर किसी विलक्षण अर्थ का बोध कराता है।  

मुहावरा और कहावत में अन्तर 

वस्तुतः दोनों में अन्तर है। मुहावरे तो शब्दों के लाक्षणिक प्रयोग है। कहावत एक पूरे वाक्य के रूप में होती है जिसका आधार कोई कहानी अथवा चिरसत्य अथवा घटना विशेष होता है। किसी विषय को मात्र स्पष्ट करने के लिए कहावतों का प्रयोग होता है तथा साथ ही कहावतों का प्रयोग बिलकुल स्वतन्त्र रूप में होता है। किसी कथन की पुष्टि के लिए अलग से उदाहरण के तौर पर कहावत का प्रयोग होता है।  

हिन्दी के प्रचलित मुहावरे, अर्थ एवं उनके प्रयोग 

1. अंगूठे चूमना: (चापलूसी करना)- इस समय विद्वान् पुरुष भी मंत्रियों के अंगूठे चूमते हैं।  

2. अंगूठा दिखाना: (समय पर धोखा देना)-उसने अपना काम निकाल लिया, परन्तु जब मुझे जरूरत पड़ी तो अंगूठा दिखा दिया।  

3. अंगूठा नचानाः (चिढ़ाना)-अपने गुरू के सामने अंगूठा नचाना ठीक नहीं।  

4. अंगूठी का नगीना: (जोड़ा मिलना)-सीताजी राम की अंगूठी का नगीना ही थीं। 

5. अंधेरे मुँह: (प्रातःकाल)-वह अंधेरे मँुह ही मेरे घर आ पहुंचा।  

6. अंक भरना: (स्नेह से लिपटा लेना)-धनिया ने अपने बेटे को देखते ही अंक भर लिया।  

7. अंगारों पर पैर रखना: (जानबूझकर हानिकारक कार्य करना)-अपने माता-पिता की तुम अकेली सन्तान हो_ इसलिए तुम्हें ऐसे अंगारों पर पैर नहीं रखना चाहिए।  

8. अंगारों पर लोटना: (दुख सहना, डाह होना)-वह बचपन से ही अंगारों पर लोटता रहा है।दूसरे की उन्नति देखकर अंगारों पर लोटना ठीक नहीं।  

9. अंड-बंड कहना: (बुरा-भला कहना)-अंड-बंड कहोगे तो मारकर मुंह तोड़ दूंगा।  

10. अन्धा बनना: (धोखा देना)-माया सबको अन्धा बनाती है, इसलिए माया के पीछे यदि तुम अन्धे बन गये तो क्या हुआ।  

11. अन्धे की लकड़ी: (एकमात्र सहारा)-वह अपने मां-बाप के लिए अन्धे की लकड़ी है।  

12. अन्धेर नगरी: (जहां धांधली का बोलबाला हो)-अरे भाई यही मिट्टी का तेल पहले एक रुपया लीटर था, बीच में एक रुपया चालीस पैसा लीटर हुआ और आज ढाई रुपया लीटर हो गया, लगता है दुकान नहीं अन्धेर नगरी ही है।  

13. अक्ल का दुश्मन: (बेवकूफ)-उसने इतना समझाया, फिर भी वह समझता नहीं, क्योंकि वह तो अक्ल का दुश्मन है।  

14. अड़ियल टट्टू: (अटक-अटककर अथवा मुंह जोहकर काम करनेवाला)-वह तो ऐसा अड़ियल टट्टू नौकर है कि बिना कहे कुछ करता ही नहीं, यों ही बैठा रहता है।  

15. अक्ल पर पत्थर पड़ना: (बुद्धिभ्रष्ट होना)-लगता है तुम्हारी अक्ल पर पत्थर पड़ गया है, तभी तुम उस हत्यारे से उलझ रहे हो।  

16. अक्ल की दुम: (अपने को बुद्धिमान् समझने वाला)-साधारण गुणा-भाग तो आता नहीं, लेकिन अक्ल की दुम मोहन साइन्स पढ़ना चाहता है।  

17. अपना उल्लू सीधा करना: (अपना काम निकालना)-मोहन अपना उल्लू सीधा करने के लिए गधे को भी बाप कह सकता है।  

18. अपना किया पाना: (कर्म का फल भोगना)-वह अपना किया पा रहा है।  

19. अपनी खिचड़ी अलग पकाना: (स्वार्थी होना)-यदि सभी लोग अपनी खिचड़ी अलग पकाएं तो देश का उत्थान कैसे होगा।  

20. अपने पांव आप कुल्हाड़ी मारना: (संकट मोल लेना)-राम से झगड़ा कर श्याम ने अपने पांव आप कुल्हाड़ी मार ली।  

21. अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना: (अपनी प्रशंसा आप करना)-महान् पुरुष अपने मुंह मियां मिट्ठू नहीं बनते। 

22. अपने पैरों खड़ा होना: (स्वावलम्बी होना)-आज के नवयुवकों को अपने पैरों खड़ा होना सीखना चाहिए।  

23. आस्तीन का सांप: (कपटी मित्र)-मोहन आस्तीन का सांप है, इसलिए उससे सावधान रहना चाहिए।  

24. आठ-आठ आंसू रोना: (बुरी तरह पछताना)-यदि इस समय तुमने अपनी जिन्दगी नहीं सुधार ली, तो बाद में आठ-आठ आंसू रोना पड़ेगा।  

25. आसमान टूट पड़ना: (संकट पड़ना)-दो चार लोगों को खिला देने से ऐसा क्या आसमान टूट पड़ा कि पश्चात्ताप कर रहे हो? 

26. इधर उधर की हांकना: (व्यर्थ गप्पें मारना)-श्याम का अधिकांश समय इधर उधर की हांकने में ही व्यतीत होता है, फिर वह कब काम करता है? 

27. ईट का जवाब पत्थर से देना: (किसी की दुष्टता का करारा जवाब देना)-दुष्टों की ईंट का जवाब पत्थर से देना चाहिए। 

28. ईद का चांद होना: (बहुत दिनों पर दिखना)-आजकल राम ईद का चांद हो गया है।  

29. उलटी गंगा बहाना: (प्रतिकूल कार्य करना)-पुरुष का साड़ी पहनकर रहना उलटी गंगा बहाना है।  

30. उन्नीस-बीस होना: (एक का दूसरे से कुछ अच्छा होना)-दोनों लड़कियां बस उन्नीस-बीस हैं।  

31. एक आंख से देखना: (बराबर मानना)-ईश्वर राजा और रंक सबको एक आंख से देखता है।  

32. एक का तीन बनाना: (नाजायज नफा लूटना)-सामान का कन्ट्रोल होने पर व्यापारी एक का तीन बनाते हैं।  

33. एक लाठी से सबको हांकना: (उचित-अनुचित का विचार किये बिना व्यवहार करना)-एक लाठी से सबको हांकना उचित नहीं है।  

34. कलेजे पर सांप लोटना: (ईर्ष्या करना)-दूसरे की उन्नति देखकर तुम्हारे कलेजे पर सांप क्यों लोटता है? 

35. कुत्ते की मौत मरना: (बुरी तरह मरना)-वह कुत्ते की मौत मरा। 

36. कलेजा ठंडा होना: (संतोष होना)-अपने दुश्मन को मरते देखकर उसका कलेजा ठंडा हुआ।  

37. कागजी घोड़े दौड़ानाः (केवल लिखा पढ़ी करना, पर कुछ काम की बात न होना) आजकल सरकारी कार्यालयों में केवल कागजी घोड़े छोड़ते हैं।  

38. किस खेत की मूली: (अधिकारहीन)-सभी मेरे आदेश का पालन करते हैं, तुम किस खेत की मूली हो? 

39. खरी खोटी सुनाना: (भला-बुरा कहना)-मैंने उसे कितनी बार खरी-खोटी सुनायी, लेकिन वह मेरी बात नहीं मानता।  

40. खून पसीना एक करना: (कठिन परिश्रम)-मैंने खून पसीना एक कर इतना धन अर्जित किया है।  

41. खटाई में पड़ना: (झमेले में पड़ना)-वहां जाने का निर्णय हो चुका था, परन्तु जाने के समय गाड़ी के खराब हो जाने से सारा काम खटाई में पड़ गया।  

42. खाक छानना: (भटकना)-पढ़-लिखकर भी नौकरी के लिए वह खाक छानता रहा।  

43. गाल बजाना: (डींग हांकना)-जो काम करना है वह करो, गाल बजाने से कोई काम नहीं होता है।  

44. गूलर का फूल होना: (लापता होना)-आप तो गूलर के फूल हो गये थे कि दिखाई ही नहीं देते थे। 

45. गड़े मुर्दे उखाड़ना: (दबी हुई बात फिर से उभारना)-अरे भाई, जो हुआ सो हुआ, अब गड़े मुर्दे उखाड़ने से क्या लाभ? 

46. गुदड़ी में लाल: (गरीब के घर में गुणवान् का पैदा होना)-अपने परिवार में डा-राजेन्द्र प्रसाद सचमुच ही गुदड़ी के लाल थे।  

47. घड़ों पानी पड़ जाना: (अत्यन्त लज्जित होना)-वह परीक्षा में नकल करके प्रथम श्रेणी प्राप्त करता था, लेकिन इस बार जब नकल करते समय पकड़ा गया तो बच्चू पर घड़ों पानी पड़ गया।  

48. घर का न घाट का: (कहीं का नही)-वह न तो पढ़ना-लिखना जानता है और न उसे कोई काम ही करने आता है, ऐसा घर का न घाट का आदमी रखकर क्या होगा।  

49. घोड़े बेचकर सोना: (बेफिक्र होना)- जब घर का सब काम हो गया, तो अब क्या घोड़े बेचकर सोओ।  

50. घर बसाना: (विवाह करना)-नौकरी लग गयी, तो अब घर भी बसा लो।  

51. घर में गंगा: (बिना परिश्रम की प्राप्ति)-वह न तो पढ़ने में तेज है और न उसने कोई दौड़-धूप ही की, फिर भी उसने ऐसी नौकरी पायी कि घर में गंगा ही बहती है। 

52. घास छीलना: (व्यर्थ काम करना)-तुम तो रात-दिन पढ़ते थे, फिर भी फेल हो गये, क्या घास छीलते थे? 

53. चार दिन की चांदनी: (थोड़े दिन का सुख)-संसार का भौतिक सुख चार दिन की चांदनी ही है। 

54. चांदी का जूता: (घूस)-आजकल तो सरकारी कार्यालयों में चांदी के जूते के बिना काम नहीं चलता।  

55. चांद पर थूकना: (सम्माननीय व्यक्ति का अनादर करना)-महात्मा गांधी की निन्दा करना चांद पर थूकना है।  

56. चादर के बाहर पैर पसारना: (आय से अधिक खर्च करना)-जितना कमाते हो, उतना ही खर्च करो, चादर से बाहर पैर पसारना ठीक नहीं। 

57. चिराग तले अंधेरा: (अच्छाई में बुराई)-वे तो स्वयं बहुत बडे़ विद्वान् हैं, किन्तु उनका लड़का चिराग तले अंधेरा ही है।  

58. छप्पर फाड़कर देना: (बिना परिश्रम के सम्पन्न करना)-जब ईश्वर की कृपा होती है, तो छप्पर फाड़कर ही मिलता है।  

59. छक्के छूटना: (बुरी तरह पराजित होना)-कुरूक्षेत्र के युद्ध में भीष्म पितामह के सामने पाण्डवों की सेना के छक्के छूटने लगते थे।  

60. जलती आग में घी डालना: (झगड़ा) बढ़ाना या क्रोध बढ़ाना)-रावण के आगे राम की प्रशंसा कर अंगद ने जलती आग में घी डाल दिया।  

61. जलभुनकर खाक हो जाना: (क्रोध से पागल हो जाना)-अरे भाई, तुम तो एक छोटी सी बात पर जल-भुनकर खाक हुए जा रहे हो।  

62. जीती मक्खी निगलना: (जान बूझकर अशोभनीय काम करना)-उस सज्जन पुरुष के खिलाफ मैं गवाही दूं? मुझसे यह जीती मक्खी नहीं निगली जायेगी।  

63. टका-सा मुंह लेकर रहना: (शर्मिंदा होना)-जब उसकी कलई खुल गयी तो वह टका-सा मुंह लेकर रह गया।  

64. टोपी उछालना: (निरादर करना)-अपने स्वार्थ के लिए दूसरों की टोपी नहीं उछालनी चाहिए।  

65. तूती बोलना: (प्रभाव जमाना)-आजकल तो गांवभर में उसी की तूती बोल रही है।  

66. तिल का ताड़ करना: (बात को तूल देना)-मैंने उसे केवल एक चांटा मारा था, लेकिन राम ने यह तिल का ताड़ कर दिया कि मैंने उसे खूब मारा है।  

67. दिन दूना रात चौगुना: (खूब उन्नति)-परिश्रम के कारण ही उस गांव का विकास दिन दूना रात चौगुना हुआ।  

68. दो दिन का मेहमान: (जल्द मरने वाला)-अब उस आदमी से क्या झगड़ते हो, वह तो केवल दो दिन का मेहमान है।  

69. दूध के दांत न टूटना: (अनुभवहीन)-उससे काम नहीं संभलेगा, उसके तो दूध के दांत भी नहीं टूटे हैं।  

70. दो नावों पर पैर रखना: (दो विरोधी पक्षों से मेल रखना)-दो नावों पर पैर रखकर आगे बढ़ना अच्छा नहीं होता।  

71. दाई से पेट छिपाना: (रहस्य जानने वालों से बात छिपाना)-मैं सारी बातें जानता हूं, तुम दाई से पेट छिपा रहे हो? 

72. धता बताना: (बहाने कर टालना)-वह तो धता बताकर घर चला गया, अब मेरा काम कैसे होगा? 

73. धोती ढीली होना: (डर जाना) डाकुओं को देखते ही मकान मालिक की धोती ढीली होने लगी।  

74. नौ-दो ग्यारह होना: (चंपत होना)-पुलिस को देखते ही चोर नौ-दो ग्यारह हो गये।  

75. निन्नानबे का फेर: (धन जोड़ने की बुरी लालच)-वह निन्नानबे के फेर में एक समय ही भोजन करता है।  

76. नानी याद आना: (होश ठिकाने आना)-आज इतना परिश्रम करना पड़ा कि नानी याद आ गयी। 

77. पेट में चूहे कूदना: (जोर की भूख)-पेट में चूहे कूद रहे थे क्या कि आते ही खाने बैठ गये? 

78. पत्थर की लकीर: (पक्का)-महात्मा गांधी ने जो कह दिया वह पत्थर की लकीर है।  

79. पांचों उंगलियां घी में: (पूरे लाभ में)-कन्ट्रोल के समय में व्यापारियों की पांचों उंगलियां घी में रहती हैं।  

80. पौ बारह होना: (खूब लाभ होना)-आजकल तो आपके कामधन्धे में पौ बारह है।  

81. बराबर करना: (चौपट करना)-इस मूर्ख लड़के ने सारा परिश्रम बराबर कर दिया।  

82. बछिया का ताऊ: (वज्रमुखी)-वह परीक्षा तो दे रहा है, लेकिन बछिया के ताऊ को कुछ भी मालूम नहीं है।  

83. बाछें खिलना: (अत्यन्त प्रसत्र होना)-इस बार वह प्रथम श्रेणी में पास हुआ है, उसकी बांछें खिली हुई हैं।  

84. भीगी बिल्ली बनना: (डर से दबना)-झगड़े का नाम सुनते ही वह भीगी बिल्ली बन जाता है।  

85. भाड़ झोंकना: (व्यर्थ समय बिताना)-बनारस रहकर अब तक तुम भाड़ झोंकते रहे?  

86. मिट्टी पलीद करना: (दुर्गति करना)-सभी लोगों के बीच उसने मेरी मिट्टी पलीद कर दी।  

87. मैदान मारना: (बाजी जीतना)-दौड़ प्रतियोगिता में राम ने मैदान मार लिया।  

88. मुट्टी गरम करना: (घूस देना)-बड़े बाबू की मुट्टी गरम करिए तब काम होगा।  

89. रोंगटे खडे़ होना: (भयभीत होना, चकित होना)-चोर की पिटाई देखकर हमारे तो रोंगटे खड़े हो गये।  

90. रंग बदलना: (परिवर्तन होना)-अब तो इस संस्था का रंग ही बदल गया।  

91. लकीर का फकीर होना: (पुरानी प्रथा पर चलना)-वह अभी भी चमड़े का जूता नहीं पहनता, लकीर का फकीर बना हुआ है।  

92. लोहा मानना: (श्रेष्ठ समझना)-आज भी लोग राजपूत वीरों का लोहा मानते हैं।  

93. श्रीगणेश करना: (शुभारंभ करना)-वृक्ष लगाने का श्रीगणेश उन्होंने ही किया है।  

94. सांप-छछूंदर की हालत: (दुविधा)-मां अलग नाराज है और बीबी अलग नाराज है, मैं किसे मनाऊं और किसे नहीं? मेरी तो सांप छछूंदर की हालत हो गयी है।  

95. समझ (अक्ल) पर पत्थर पड़ना: (बुद्धि भ्रष्ट होना)-रावण की समझ पर पत्थर पड़ा था कि विभीषण जैसे भाई को भी उसने लात मारी।  

96. हाथ के तोते उड़ना: (स्तब्ध होना)-डाकुओं को देखते ही सभी के हाथ के तोते उड़ गये।  

97. हथियार डाल देना: (हार मान लेना)-अंत में उसने हथियार डाल दिया।  

मुंह पर मुहावरे 

1. मुंह की खाना: (बुरी तरह हारना)-अंत में उसे मुंह की खानी पड़ी।  

2. मुंह छिपाना: (लज्जित होना)-तुम कब तक मुझसे मुंह छिपाते रहोगे।  

3. मुंह धोना: (आशा न करना)-गड्ढे में मुंह धो लो, वह वस्तु तो मिलने से रही।  

4. मुंह बन्द करना: (निरुत्तर कर देना)-तुम घूस देकर मेरा मुंह बन्द करना चाहते हो?  

5. मुंह ताकना: (सहायता के लिए आशा करना)-किसी काम के लिए दूसरे का मुंह ताकना अच्छा नहीं।  

दांत पर मुहावरे 

1. दांत से दांत बजना: (बहुत जाड़ा पड़ना)-ऐसे ठंड पर रही है कि दांत से दांत बज रहे हैं।  

2. दांत काटी रोटी: (गहरी दोस्ती)-राम से उनकी दांत काटी रोटी है।  

3. दांत गड़ाना: (किसी वस्तु को पाने के लिए गहरी चाह करना)-वह आदमी कई दिनों से मेरी घड़ी पर दांत गड़ाये था।  

4. दांत तले उंगली दबाना: (चकित होना)-जापान की उन्नति देखकर लोग दांतों तले उंगली दबाते हैं।  

कान पर मुहावरे 

1. कान देना: (ध्यान देना)-बड़ों की बातों पर कान देना चाहिए।  

2. कान में तेल डालना: (कुछ न सुनना)-मैंने उन्हें कई पत्र दिये, पर एक का भी उत्तर न आया। लगता है कान में तेल डाले बैठे हैं।  

3. कान पर जूं न रेंगना: (ध्यान न देना)-मैंने प्राचार्य महोदय को कई स्मरण-पत्र दिये, लेकिन उनके कान पर जूं भी नहीं रेंगती।  

4. कान खोलना: (सावधान करना)-राम ने मेरा कान खोल दिया अब में किसी के चक्कर में नहीं आऊंगा।  

5. कान फूंकना: (बहका देना, दीक्षा देना)-लगता है, किसी ने तुम्हारे कान फूंक दिये हैं, तभी तुम मेरी बात नहीं सुनते।  

6. कान खाना: (तंग करना)-देखो जी, तुम मेरा कान मत खाओ।  

7. कान पकड़ना : (कोई काम फिर न करने की प्रतिज्ञा करना)-अब तो वह चोरी न करने के लिए कान पकड़ता है।  

8. कान भरना: (पीठ-पीछे शिकायत करना)-तुम बार-बार मेरे खिलाफ प्राचार्य महोदय के कान भरते हो।  

9. कान काटना: (बढ़कर काम करना)-वह तो अपने उस्ताद के भी कान काटने लगा है।  

नाक पर मुहावरे 

1. नाकों चने चबाना: (तंग करना)-मराठों ने मुगलों को नाकों चने चबवा दिये।  

2. नाक पर मक्खी न बैठने देना: (निर्दोष बचे रहना)-प्राचार्य महोदय ने कभी नाक पर मक्खी बैठने ही न दी।  

3. नाक कट जाना: (प्रतिष्ठा नष्ट होना)-तुम्हारे कारण मेरी नाक कट गयी।  

4. नाक काटना: (बदनाम करना)-सभी लोगों के बीच उसने मेरी नाक काट ली।  

5. नाक पर गुस्सा: (तुरंत क्रोधित हो जाना)-तुम्हारी नाक पर हमेशा गुस्सा ही रहता है।  

6. नाक रगड़ना: (दीनतापूर्वक प्रार्थना)-उसने बहुत नाक रगड़ी, फिर भी मालिक ने उसे कारखाने से निकाल दिया।  

7. नाक का बाल होना : (अधिक प्यारा होना)-पुत्र अपने पिता की नाक का बाल होता है।  

आंख पर मुहावरे 

1. आंखें चुराना: (नजर बचाना अर्थात् अपने को छिपाना)-मुझे देखकर तुम कबतक आंखें चुराते रहोगे।  

2. आंखों में खून उतरना: (अधिक क्रोध करना)-लड़के की बदमाशी देखकर उनकी आंखों में खून उतर आया।  

3. आंखें पथरा जाना: (मर जाना)-देखते ही देखते उसकी आंखें पथरा गयीं।  

5. आंखों में गड़ना: (किसी चीज को पाने की बलवती इच्छा)-वह लड़की मेरी आंखों में गड़ गयी है।  

6. आंखें फेर लेनाः (उदासीन हो जाना)-अपना काम हो जाने पर उसने मेरी ओर से आंखें फेर ली हैं।  

7. आंखों का कांटा होना: (शत्रु होना)-आजकल राम मेरी आंखों का कांटा हो रहा है।  

8. आंखे बिछाना: (प्रेम से स्वागत करना)-उनके आने पर मैंने अपनी आंखें बिछा दीं।  

9. आंखों में धूल झोंकना: (धोखा देना)-कल श्याम की आंखों में धूल झोंककर भाग गया।  

10. आंख मारना: (इशारा करना)-वह आंख मारकर उस लड़की को बुला रहा था।  

11. आंखें चार होना: (आमने-सामने होना)-आज उन दोनों की आंखें चार हो गयीं।  

बात पर मुहावरे 

1. बात की बात में: (अतिशीघ्र)-बात की बात में वह मारकर भाग गया।  

2. बात का धनी: (वायदे का पक्का) -वह बात का धनी है, इसलिए जरूर तुम्हारा काम करेगा।  

3. बात पर न जाना: (विश्वास न करना)-तुम्हारी बदमाशी के कारण ही मैं तुम्हारी बात पर नहीं जाता।  

4. बात तक न पूछना: (निरादर करना)-मैं राम के घर गया, पर उसने बात तक न पूछी।  

सिर पर मुहावरे 

1. सिर फिर जाना: (पागल हो जाना)-प्रचुर संपत्ति पाकर श्याम का सिर फिर गया है।  

2. सिर मारना या खपाना : (बहुत प्रयत्न करना)-उसने बहुत सिर मारा, लेकिन उसे नौकरी नहीं ही मिली।  

3. सिर खुजलाना: (बहाना करना)-अरे भाई, सिर खुजलाने से काम नहीं चलेगा।  

4. सिर पर भूत सवार होना: (धुन सवार होना)-मालूम होता है कि तुम्हारे सिर पर भूत सवार हो गया है।  

5. सिर पर सवार होना: (पीछे पड़ना)-तुम क्यों मेरे सिर पर सवार हुए जा रहे हो?  

गर्दन पर मुहावरे 

1. गर्दन पर छुरी फेरना: (अत्याचार करना)-तुम क्यों उसकी गर्दन पर छुरी फेर रहे हो?  

2. गर्दन पर सवार होना: (पीछा न छोड़ना)-वह अपने काम के लिए हमेशा मेरी गर्दन पर सवार रहता है।  

3. गर्दन उठाना: (प्रतिवाद करना)-राजाओं के विरोध में गर्दन उठाना आसान नहीं था। 

कहावतें (PROVERBS) 

वस्तुतः कहावतों के मूल में कोई कहानी अथवा घटना ही होती है। बाद में जब लोगों की जबान पर उस घटना अथवा कहानी से निकली बात चल पड़ती है तो वही ‘कहावत’ बन जाती है। कहावतों के मूल में नीतिमूलक सूत्र रहते हैं, प्रचलित कहावतें और उनके अर्थ दिये जा रहे हैं:  

1. अधजल गगरी छलकत जायः थोड़ी विद्या अथवा धन पाकर इतराना, घमंड करना।  

2. अंधे के आगे रोना, अपना दीदा खोना: जो अत्याचारी और निर्दयी होते हैं। उनके आगे अपना दुखड़ा सुनाना व्यर्थ होता है।  

3. अंधों में काना राजा: यदि बहुत-से मूर्ख हों तो उनमें से किसी एक को पंडित मानना।  

4. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता: अकेला आदमी कुछ नहीं कर पाता।  

5. अपनी डफली, अपना राग: जिसकी जैसे इच्छा हो वैसा करे अर्थात् संगठन का अभाव।  

6. अशर्फी की लूट और कोयले पर छाप: कीमती समान को नष्ट होने देना और तुच्छ एवं सस्ती वस्तु की रक्षा करना।  

7. आप भला तो जग भला: आदमी यदि स्वयं भला हो अर्थात् सज्जन हो तो दूसरे आदमी की भी भलाई कर सकता है।  

8. आगे नाथ न पीछे पगहा: बिलकुल निःसंग। 

9. आम का आम गुठली का दाम: किसी भी काम में दूना लाभ उठाना। 

10. आप डूबे तो जग डूबा: अपना बुरा होने पर पूरी दुनिया को बुरा मान लेगना। 

11. आये थे हरिभजन को ओटन लगे कपास: कोई आदमी कुछ काम करने चले और करने लगे कुछ दूसरा काम।  

12. उंगली पकड़कर पहुंचा पकड़ना: धीरे-धीरे हिम्मत बढ़ना।  

13. ऊंची दूकान, फीका पकवान: जिसमें सिर्फ तड़क-भड़क हो और वास्तविकता न हो।  

14. ऊंट के मुंह में जीरा : जितनी जरूरत हो उससे बहुत कम।  

15. उलटे चोर कोतवाल को डांटे: अपराध करने वाला अपराध पकड़ने वाले को डांटे।  

16. एक पंथ दो काज: एक साथ दो इच्छित लाभ होना।  

17. एक म्यान मे दो तलवार: एक जगह पर दो अहंकारी व्यक्ति नहीं रह सकते।  

18. एक तो करेला, दूजे नीम चढ़ा: बुरे आदमी को बुरे का संग मिलना।  

19. ओखली में सिर दिया तो मूसलों से क्या डरना: विपत्ति के समय धैर्य से काम लेना।  

20. कहां राजा भोज और कहां गंगू तेली: छोटे और निर्धन आदमी का मिलन बड़ों से नहीं होता।  

21. कबीरदास की उलटी बानी, बरसे कम्बल, भीजे पानी: बिलकुल उल्टा काम।  

22. कहीं की ईंट, कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा: इधर-उधर से वस्तुएं लेकर कोई चीज बनानाा अर्थात् कोई नवीनता नहीं।  

23. काला अक्षर भैंस बराबर: बिलकुल अनपढ़ का लक्षण।  

24. का बरसा जब कृषि सुखाने: अवसर के बीत जाने पर काम पूरा नहीं होता।  

25. काबुल में क्या गधे नहीं होते: अच्छे-बुरे लोग हर स्थान पर होते हैं।  

26. खरी मजूरी, चोखा काम: पूरा पैसा देने से अच्छा और पूरा काम होता है।  

27. खेत खाये गदहा और मार खाये जुलहा: कसूर कोई करे और सजा किसी और को मिले। 

28. खोदा पहाड़, निकली चुहिया: कठिन परिश्रम करने पर भी तुच्छ परिणाम निकलना।  

29. गांव का जोगी जोगड़ा, आन गांव का सिद्ध: यदि कोई परिचित योग्य व्यक्ति है तो उसकी कोई कद्र नहीं करना और अपरिचित को सम्मान देना।  

30. गुरु गुड़ रहा चेला चीनी हुआ: शिष्य गुरु से आगे निकला।  

31. गये थे रोजा छुड़ाने, गले पड़ी नमाज: सुख के लिए जाय, पर मिले दुख।  

32. गोद में लड़का, नगर में ढिंढोरा: सहज ही मिलने वाली वस्तु के लिए व्यर्थ परेशान होना।  

33. घर की मुर्गी दाल बराबर: घर की कीमती वस्तु का कोई मूल्य नहीं आंकता।  

34. घी का लड्डू टेढ़ा भला: लाभदायक वस्तु किसी भी रूप में लाभदायक ही होती है।  

45. चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाय: बड़ी एवं कीमती वस्तु को खोकर छोटी वस्तु को बचाने की चेष्ट करना।  

46. चोर की दाढ़ी में तिनका: अपराध करने वाला व्यक्ति स्वयं चिन्तित एवं डरता रहता है।  

50. चोर-चोर मौसेरे भाई: एक समान पेशेवाले व्यक्ति आसानी से आपस में मिले जाते हैं।  

51. चौबे गये छब्बे होने, दूबे बनके आये: लाभ के लिए जाय और बदले में मिल जाय हानि।  

52. छठी का दूध याद आना: बुरा हाल होना। 

53. जिन ढूंढ़ा तिन पाइयां गहरे पानी पैठ: अथक और कठोर परिश्रम करनेवाले को अवश्य सफलता मिलती है।  

54. जैसे मुर्दे पर सौ मन वैसे हजार मन: दुखी व्यक्ति पर और अधिक दुख का पड़ता।  

55. जिस पत्तल में खाना उसी में छेद करना: किये गये उपकार को न मानना।  

56. जिसकी लाठी उसकी भैंस: शक्तिशाली सब कुछ कर सकता है।  

57. जहां न जाये रवि, तहां जाये कवि: दूरदर्शी पैनी दृष्टिवाला।  

58. जैसा राजा वैसी प्रजा: बड़े व्यक्ति के आचरण का प्रभाव छोटे व्यक्ति पर पड़ता है।  

59. जैसी करनी वैसी भरनी: जैसा किया जाता है वैसा फल मिलता है।  

60. जल में रहे, मगर से बैर: जिसके अधीन रहे उसी से बैर।  

61. जाके पांव न फटी बिवाई सो क्या जानै पीर पराई : बिना दुख भोगे दूसरे के दुख का अनुभव नहीं हो सकता।  

62. डूबते को तिनका सहारा: असहाय आदमी के लिये थोड़ा-सा भी सहारा बहुत होता है।  

63. तन पर नहीं लत्ता, पान खाये अलबत्ता: झूठा घमंड दिखलाना।  

64. तीन बुलाये, तेरह आये: बिना बुलाये ही बहुत लोगों का आ जाना।  

65. दालभात में मूसलचन्द: किसी के काम में बेकार ही दखल देना।  

83. दुधार गाय की लताड़ भली: जिससे लाभ हो उसकी झिड़कियां भी अच्छी लगती हैं।  

84. दमड़ी की हंड़िया गयी, कुत्ते की जात पहचानी: थौड़ी-सी वस्तु में ही बेइमानी का पता लगाना।  

85. दस की लाठी एक का बोझ: कई लोगों के सहयोग से कार्य अच्छी तरह से हो जाता है, जबकि एक आदमी के लिए वह कठिन हो जाता है।  

86. दूध का जला मट्टा भी फूंक-फूंककर पीता है।: एक बार धोखा खा लेने पर आदमी सावधान होकर कार्य करता है।  

87. दूर का ढोल सुहावने: कोई भी वस्तु दूर से अच्छी लगती है।  

88. देशी मुर्गी बिलायती बोल: बेमेल एवं बेढंगा काम करना।  

89. दुविधा में दोनों गये, माया मिली न राम: एक साथ दो काम नहीं हो पाता अर्थात् कोई लाभ नहीं होता।  

90. धोबी का कुत्ता, न घर का, न घाट का: कहीं का न रहना, निरर्थक सिद्ध होना।  

91. न नौ मन तेल होगा, और न राधा नाचेगी: किसी साधन के अभाव में बहाना करना।  

92. न रहे बांस, न बाजे बांसुरी: किसी काम की जड़ को ही नष्ट कर देना, निर्मूल करना।  

93. नेकी और पूछ-पूछ: बिना कहे ही भलाई करना।  

94. नाम बडे़, दर्शन थोड़े: किसी के गुण से अधिक प्रशंसा एवं प्रचार का होना।  

95. नाच न जाने, आंगन टेढ़: काम करने का ढंग मालूम न होने पर कुछ दूसरा बहाना करना। 

96. नीम हकीम खतर-ए-जान: अयोग्य व्यक्ति से लाभ के बदले हानि ही मिलती है।  

97. पानी पी कर जात पूछना: काम करके परिणाम के बारे में सोचना।  

98. बन्दर क्या जाने अदरक का स्वाद: मूर्ख आदमी गुण का आदर करना नहीं जानता।  

99. बीबी महल में, गला बाजार में: लाज-लिहाज छोड़ देना।  

101. बिल्ली के भाग से छींका टूटा: संयोग से काम का हो जाना।  

102. बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख: लालची बनने से कोई काम नहीं बनता।  

103. भई गति सांप-छछुन्दर केरी: दुविधा में पड़ना।  

104. भागते भूत की लंगोटी भली: जो बचा है उसे ही अधिक समझना। 

105. भैंस के आगे बीन बजाये, भैंस खड़ी पगुराय: मूर्ख के आगे गुणों की प्रशंसा करना बेकार है।  

106. मन चंगा तो कटौती में गंगा: यदि मन शुद्ध है तो सब कुछ ठीक।  

107. दान की बछिया के दांत नहीं देखे जाते: मुफ्रत मिले हुए सामान पर टीका-टिप्पणी करना अनुचित है।  

108. मुंह में राम, बगल में छुरी: कपटी आदमी। 

109. मानो तो देव नहीं तो पत्थर: विश्वास करने से ही फल मिलता है।  

110. मेढकी को जुकाम होना: योग्यता न होने पर भी योग्यता का ढोंग करना। 

111. रस्सी जल गयी, पर ऐंठन न गयी: बुरी हालत हो जाने पर भी धमंड करना।  

112. सब धान बाइस पसेरी: अच्छे-बुरे सबको एक समान समझना।  

113. सांप भी मरे और लाठी भी न टूटे: किसी नुकसान के बिना ही काम का पूरा होना।  

114. होनहार बिरवान के होत चीकने पात: होनहार के लक्षण शुरू से ही दिखाई देने लगते हैं।  

115. हाथ कंगन को आरसी क्या: प्रत्यक्ष वस्तु के लिए प्रमाण की जरूरत नहीं होती। 

विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं पूछे गये मुहावरे 

SSC JHT 2013 

मुहावरा अर्थ 

• मेंढकी को जुकाम होना छोटे आदमी द्वारा नखरा दिखना 

• आँख फेरना  बदल जाना 

• पेट में दाढ़ी होना  छोटी उम्र में ही बहुत बुद्धिमान  

• ढोल की पोल खुलना  असलियत सामने आना 

• कान भरना  झूठी शिकायत करना 

• खोदा पहाड़, निकली चुहिया  अधिक मेहतन, फल कम 

• सांप को दूध पिलाना  दुष्ट का उपकार करना 

• अगर-मगर करना  टाल-मटोल करना  

• काम का न काज का दुश्मन अनाज का बेकार आदमी का बोझ स्वरूप होना 

• भेड़ जहां जाएगी मूड़ी जाएगी बड़ों के बीच छोटों की कोई नहीं सुनता 

UPPCS (Mains) 2011 

• तोता चश्मी करना (प्रेम रहित कर देना) 

• बालू से तेल निकालना (असम्भव कार्य करना) 

• नौ दो ग्यारह होना (गायब हो जाना) 

• कालिख पोतना (कलंकित करना) 

• नौ नकद न तेरह उधार (नकद का काम उधार में अच्छा) 

• अनदेखा चोर शाह बराबर (अंतर न कर पाना) 

• खिसियानी बिल्ली खम्भ्भा नोचे (क्रोध वश बेवकूफी का कार्य करना) 

• गंगा गये गंगादास, जमुना गये जमुनादास (मौका परस्त होना) 

UPPCS (Mains) 2010 

• उल्लू सीधा करना (काम निकालना) 

• एक का तीन बनाना (अधिक लाभ प्राप्त करना) 

• गाल बजाना (बकवास करना) 

• घी कहां गिरा, खिचडी में (अच्छे से मिलजुल जाना) 

• तू डाल-डाल, मैं पात-पात  

• सब धान बाइस पसेरी (सबके साथ एक सा व्यवहार) 

• उड़ती चिड़िया पहचानना (मन की बात जानना) 

UPPCS (Mains) 2009 

• अंगूठा दिखाना (समय आने पर इन्कार करना) 

• आग बबूला होना (बहुत गुस्सा होना) 

• खाक छानना (मारा-मारा फिरना) 

• बांह पकड़ना (सहायता देना) 

• बांए हाथ का खेल (सरल काम) 

• एक ही थैली के चट्टे-बट्टे (सबका एक समान होना) 

• उल्टी गंगा बहाना (उल्टा काम करना) 

• एक और एक ग्यारह (संगठन में शक्ति का होना) 

UP Lower(Mains) 2008 

• खाक छानना (भटकते फिरना) 

• हथेली पर सरसों उगाना (असंभव कार्य करना) 

• पौ बारह होना (अधिक लाभ होना) 

• लोहे के चने चबाना (पराजित होना) 

• घाट-घाट का पानी पीना (अनुभव प्राप्त करना) 

UP Lower(Mains) 2006 

• चांदी काटना (खूब धन पैदा करना) 

• छाती पर सांप लोटना (ईर्ष्या होना) 

• गड़े मुर्दे उखाड़ना (अर्थहीन बातों को बतलाना) 

• अपना उल्लू सीधा करना (स्वार्थ साधना) 

UP Lower (Mains) 2004 

• अंगारे उगलना (क्रोध में बुरा-भला कहना) 

• टोपी उछालना (निरादर करना) 

• तीन लोक से मथुरा न्यारी (निराला ढंग) 

• का बरखा जब कृषि सुखानी (मौका बीत जाने पर कार्य करना व्यर्थ है।  

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